मुझे याद पड़ता है कि मैंने एक बार पढ़ा था कुछ लोग अपने विचारों पर भाषा का लेप चढ़ाकर अपने विचारों को दूसरों से छिपाए रखते हैं। लेकिन मेरा अनुभव यह रहा है कि इससे कहीं अधिक संख्या में लोग विचारों के स्थान पर इसे प्रयोग करते हैं।
किसी व्यापारी के वार्तालाप को अन्य किसी भी मानवीय कार्य के मुकाबले कम तथा सरल नियमों से नियमित होना चाहिए। वे हैं;
कहने के लिये कुछ हो।
कह दें।
वार्तालाप का अंत कर दें।
आप क्या कहना चाहते हैं यह जानने से पहले ही शुरूआत करने से और अपनी बात कह लेने के बाद उस पर अडे़ रहने से व्यापारी कानूनी वाद या किसी दरिद्रालय में फंस जाता है। और कानूनी वाद में फंसना भी जेल जाने का शॉर्टकट ही है। मैं यहां एक कानूनी विभाग को व्यवस्थित रखता हूं और उसके लिए बहुत पैसा खर्च होता है, लेकिन यह मुझे कानून के पास जाने से रोकने के लिए है।
यदि आप किसी लड़की से मिल रहे हैं या रात्रिभोज के बाद दोस्तों के साथ वैसी ही लंबी बातें कर रहे हैं जैसी रविवार को स्कूल से निकलने के बाद करते हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं है, हो सकता है इस दौरान आप फूल तोड़ने के लिए रास्ते में रुक भी जाएं; लेकिन कार्यालय मे हमारे वाक्य यथासंभव संक्षिप्त होने चाहिए और उनके बीच ठहराव होने चाहिए। भूमिकाओं और भाषणों को निकाल दें, और दूसरी बात कहने से पहले रुकें। अपने उपदेश मे आपको अपराधियों का पता लगाने के लिए कम शब्दों में बोलना होता है; और उपयाजक लंबे भाषणों पर विश्वास नही रखते। सबसे पहले मूर्खों को संबोधित करें और सबसे अंत में औरतों को। जैसे मांस किसी सैंडविच के बीच में ही होता है वैसे ही किसी भाषण में समझदारों की जगह भाषण के बीच में होनी चाहिए। हां, किसी भी ओर थोड़ा बहुत मस्खा लगाने में कोई नुकसान नहीं है बशर्तें आप जिसे मस्खा लगा रहे हैं वह ऐसी मस्खेबाज़ी को पसंद करता हो।
यह भी याद रहे, कि समझदार दिखना तो आसान है लेकिन समझदारी भरी बातें करना मुश्किल। दूसरों से कम बोलें और जितना बोलें उससे ज़्यादा सुनें; क्योंकि जब व्यक्ति सुन रहा होता है तो वह अपने बारे मे नहीं बता रहा होता और बोलने वाले को मस्खा मार रहा होता है। अधिकतर आदमियों के अच्छे श्रोता बनें और अधिकतर औरतों को लिखने के लिए पर्याप्त कागज़ दें और वे आपके सामने वे सब उगल देंगे जो वे जानते हैं। पैसा बोलता है लेकिन तब तक जब तक कि उसका स्वामी बड़बोला न हो और वह हमेशा औरों पर चुभने वाली टिप्पणियां नहीं करता हो। ग़रीबी भी बोलती है, लेकिन उसकी बातों को कोई सुनना नहीं चाहता।